आग दिल में हम लगाये हुए हैं
चोट पत्थर का ही खाये हुए हैं।
हमें अपनो ने मारा है भरदम
अपने किस्मत से हारे हुए हैं।
जबसे खाये मुहब्बत में धोखे
उन्हें दिल से ही हटाये हुए हैं।
इस जमाने में जीने हैं मुश्किल
शैतान बनके जो छाये हुए हैं।
मुझको लूटा है सूरत तुम्हारी
उनको नजरों में छुपाये हुए हैं।
नहीं था मंजूर रब को ऐ बिन्दु
कितने जहमत हम उठाये हुए हैं।
बहुत सुन्दर बिंदुजी….थोड़ा और अच्छा हो सकता है अवलोकन करेंगे तो…..
आपकी रचना दोहे में प्रतिकिर्या नहीं जा रही इस लिए यहाँ लिख रहा हूँ… बेहद लाजवाब आपने परिवर्तन किया है दोहों में….और आपने मुझे जैसे व्यक्ति की बातों को, जिसके पास आप जैसी अच्छी सोच नहीं है लिखने की, बहुत सम्मान दिया है…मैं शब्दों में आपका शुक्रिया अदा नहीं कर सकता….निवतियाजी ने बिलकुल सही कहा है…आप हिंदी भाषी नहीं है फिर भी आप लिखते हैं…और बेहद उम्दा लिखते हैं…हम आपसे प्रेरित होते हैं…उत्साहित होते हैं…नमन मेरा आपके भावों को…जय हो…..
हमारे लिए आपने जो समय दिया यह आपकी महानता है। धन्यवाद….
मोहब्बत में धोखा
मोहब्बत थी कब
गलतफहमियों को जीते रहे
उसे ही मोहब्बत कहते रहे
गलतफहमी को टूटना ही था
टूट गई
जो परवान चढ़े
मोहब्बत उसे ही कहते हैं
अच्छी गजल, बिन्दु जी।
Ek do sthan par apoorntaa lagi mujhe……..
bhut khoobsurat gazal likha apne ……………
Nice ….