मंद मंद चलती समीर, यूं तेरे बालों को लहराती है….
जैसे मस्त बदली कोई, चाँद को चूम चूम जाती है…
सुप्त इश्क़ का अंकुर, उर में हलचल करता है…
मतवारे नैनों से जब तू, मय छलकाती जाती है…
खिल जाऊं कमल जैसे, मन शैशव हो जाए है…
अधीर हुए होंठों को जब तू, मदिरा पिला जाती है….
ना मैं चतुर बनिक सा, ना नट सा कलाकार हूँ…
चाकर हो जाता हूँ जब, मृगनयनी आँखें मटकाती है…
प्रीत लगा के तुमसे, मन “चन्दर” अब आराम से है…
जैसे तपती रूह को तरुवर छाया कहीं मिल जाती है…
\
/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)
Sundar rachnaa Babbu Ji ………….
तहदिल आभार आपका….Madhukarji….
Behad sunder……………………..
तहदिल आभार आपका….Vijayji….
प्रेम रास में लिपटी खूबसूरत ग़ज़ल ……..अति सुंदर !
तहदिल आभार आपका….Nivatiyaji…..
Sundar rachna, Sharma ji…
तहदिल आभार आपका….Anuji….
bhut khoobsurat rachana apki………….
तहदिल आभार आपका….Madhuji….
बहुत खूबसूरत रचना बब्बू जी।
तहदिल आभार आपका….Binduji….
बहुत ख़ूबसूरत रचना ,क्या समाँ बाँधा है आपने बब्बू जी ,अति सुन्दर
तहदिल आभार आपका….Kiranji….
बहुत खूब ……….., अति सुन्दर …….,
तहदिल आभार आपका….Meenaji….