जरुरत से बनते और बिगड़ते है, रिश्ते जहाँ,
ऐसी दुनिया में कैसे मिले, सुकून किसीको यहाँ?
न अपना कोई सगा यहाँ,
न ही कोई है बेगाना यहाँ,
बस मतलब की दुनिया है सारी,
रिश्तों पे भी पड़ता है स्वार्थ भारी,
जरुरत से बनते और बिगड़ते है, रिश्ते जहाँ,
ऐसी दुनिया में कैसे मिले, सुकून किसीको यहाँ?
न ही सच दिखता है यहाँ,
न ही झूठ टिकता है यहाँ,
बस सुविधा के हिसाब से बोला जाता,
कभी झूठ तो कभी सच यह बन जाता,
सच और झूठ का पैमाना, बदलता रहता जहाँ,
ऐसी दुनिया में कैसे मिले, सुकून किसीको यहाँ?
जरुरत से बनते और बिगड़ते है, रिश्ते जहाँ,
ऐसी दुनिया में कैसे मिले, सुकून किसीको यहाँ?
अनु महेश्वरी
चेन्नई
Bahut sahi kaha Anu……..Samaaj aisa hi hai …………jitni jaldi insaan is saty ko aatmsaat kar le utnaa hi frustration kam ho .
Thank you,Shishir ji…
इस बेगानी सी दुनिया में कौन किसको पूछता है सब के सब यहां मतलबी यार हैं, बहुत कम ऐसे हैं जो सबके लिए सोचते हैं।
Thank you,Bindeshwarji…
सर्वदा की तरह यथार्थ से परिपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ……………जिसने इस सत्य को जान लिया उसे किसी से कोई राग द्वेष नहीं रह जाता !!
Thank you,Nivatiya ji..
यथार्थ से परिपूर्ण रचना है आपकी….मैंने अपने बजुर्गों को देखा है….रिश्ते उनके देखें हैं…मन में उनके स्वार्थ नहीं था….पैसे की वजह से रिश्ते नहीं थे उनके…. शायद हमारी पीढ़ी ने तरक्की एक दम से देख ली जो विज्ञान की वजह से हुई या किसी वजह से भी….उस से नैतिक मूल्यों का हनन शुरू हुआ…रिश्तों की परिभाषा लालच…स्वार्थ से तय होने लगी…. अभी भी सब बुरा नहीं है….हाँ हमने ऐसी शुरुआत कर दी है कुछ ज्यादा ही जो आने वाली पीढ़ी का आधार बन रही है….जो सबसे बुरा है…. रिश्तों में वही प्यार और विश्वास हम को फिर से पैदा करना है… शुरुआत तो हमें ही करनी है….
Thank you, Sharmaji..
बहुत ही गजब…………… जितनी तारीफ की जाए ,कम है अनु जी…..
Thank you, Madhu ji…
sachchai ko darshati ek khubsurat rachna
Thank you, Rajeev ji…
बहुत सुंदर.
Thank you,Vijay ji…
Truly written Anu ji .
Thank you, Meena ji…