कैसे कह दूँ
मैंने जग देखा है जगजीवन देखा है?
मैंने तो बस महलों के अंदर देखा है
सबकी आँखों अश्क नहीं शबनम देखा है।
परदों के पीछे परदों का मंजर देखा है
मधुकलशों में यौवन का दमखम देखा है।
कैसे कह दूँ
मैंने सुख का दुख का आलिंगन देखा है?
चमन फूल कलियों की बस खुश्बू समझी है
काँटों बिंधी तितली की तड़प नहीं देखी है।
चहकती चिड़िया की भी गुफ्तगू समझी है
हर पिजरे में पलती कसक नहीं देखी है।
कैसे कह दूँ
मैंने कोलाहल में सूनापन देखा है?
मैंने बस पायल की थिरकन देखी है
थककर थमते पग की व्यथा नहीं देखी है।
मैंने यौवन-रंगरलियों में प्यारा चुंबन देखा है
यौवन की गलियों सूनेपन का रुदन नहीं देखा है।
कैसे कह दूँ
मधुकलशों में विष का भी मिश्रण देखा है?
मैंने खूनी खंजर को छिपता देखा है
बेकसूर को सूली पर चढ़ता देखा है।
घृणा से बढ़ता अहं घटते नहीं देखा है
द्वेष बढ़ते देखा, मरते नहीं देखा है।
कैसे कह दूँ
मैंने जन्म-मरण का संगम क्षण देखा है?
मैंने कभी शव मरघट जाता नहीं देखा
जन्मे शिशु को खुदकुशी करता नहीं देखा।
किसी को खुद कफन ओढ़ता नहीं देखा है
न ही खुद की कब्र खोदता नहीं देखा है।
कैसे कह दूँ
मैंने बुद्धि शुद्धि का मन मंथन देखा है?
मैंने ना मंदिर ना मस्जिद ही देखी है
मैंने बस मधुशाला में साकी देखी है।
मैंने मदिरा की अक्षुष्ण धारा देखी है
रंगमहल में सपनों की आभा देखी है।
कैसे कह दूँ
मैंने जग देखा है जग जीवन देखा है?
….. भूपेन्द्र कुमार दवे
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Very nice Bhupendr JI
bhut khoobsurat rachana………………
बहुत खूब…….
Bahut khubsurat rachana.
बहुत ही सुंदर……………