सावन की रुत भीगा मौसम….
भीगा है मेरा मन…..
राह मैं तेरी देखूं हर पल….
आ जाओ न अब साजन….
मेहंदी रचा हाथों पे मैंने…
नाम तेरा छुपाया उसमें….
बार बार चूमूँ मैं उसको….
जैसे तुम्हें हो पाया मैंने….
अब रह पाऊं न तुम बिन….
आ जाओ न अब साजन….
सखियाँ झूम झूम के गायें…
मन मेरा भी ललचाये….
पर गाऊं मैं तेरे ही संग…
जब तू झूला मुझे झुलाये…
बीत न जाए ये सावन….
आ जाओ न अब साजन….
हंसती हैं सब सखी सहेली..
देख मेरी हालत जो बनी….
कोई कहे मैं हुई बावरी…
कोई कहे में तुझसे हारी…
कोई न जाने दिल मेरे को…
और इसका ये पागलपन…
आ जाओ न अब साजन….
यूं तो मौसम आते जाते…
हर पल तेरी याद दिलाते….
जब भी आँगन फूल खिलते…
‘चन्दर’ दीखते तुम मुस्काते…
मन भंवरा समझाऊँ कैसे….
मुआ सावन आग लगाए….
जले है सब मेरा तन मन…
आ जाओ न अब साजन….
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/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
Bahut khoob Babbu Ji. Aap past me prakashit meri ek rachnaa “saavan kaa vigyan” bhi padhe or apne pratikriyaa awashya bhege. Mujhe asha hai aapko vah rachnaa pasand aaegi.
तहदिल आभार आपका….मधुकरजी….खोज में “सावन का विज्ञान” मिली नहीं….नाम कुछ और तो नहीं कहीं….
Babbu Ji aapki aasaani ke liye maine rachnaa neeche copy paste kar dee hai. Search me ek baar me hi mil gai.
सावन का विज्ञान – शिशिर मधुकर Shishir “Madhukar” शिशिर कुमार गोयल 30/07/2016 24 Comments
सावन का महीना ज्यों ज्यों ही पास आता हैं
उमस भरा मौसम सकल लोगों को सताता हैं
गोरियां राहत के लिए जो उपाय अपनाती हैं
उस से तो सावन में उमंगों की बहार आती हैं
झूलो का पड़ जाना मरा एक निरा बहाना है
असल खेल तो खुद को तपिश से बचाना है
मेहंदी के लाल रंग जब हाथों में लग जाते हैं
उबलते बदनो को वो ठण्डी राहत दिलाते हैं
झूलो के करम से सब पीड़ाएँ जब मिटती हैं
सजना से मिलन को फ़िर हूक सी उठती हैं
इशारों में गा गा कर जो मन के भेद बताते हैं
वही सब तो सावन के मधुर गीत कहलाते हैं
गोरी के मायके से मिठाइयां जो भी आती हैं
वो भी तो पाक मिलन की खुशियां मनाती हैं
शिशिर मधुकर
bahut bahut abhaar…..maine galti yeh ki control ‘f’ se search mein daala wo bar mein chala gya…tab nahin nikli…dekha ni right side box pahle hai…usmein likho to aati…. maine yeh padhi hai rachna pahle…comments bhi de rakhe…aap toh likhe hi khoob hain maashallah…..
मुआ सावन आग लगाए….
जले है सब मेरा तन मन………
मौसम के अनुकूल क्या खूब ह्रदय के भावो को झुलाया है ………………खूबसूरत गीत रचना ………….अति सुन्दर !
सही कहा…मौसम के झूलें हैं…हाहाहा….तहदिल आभार आपका…निवतियाजी….
अति सुन्दर सावन और साखियों के मेल वाली रचना… Wah….
तहदिल आभार आपका……Sharmaji….
Bahut sundar
तहदिल आभार आपका……Anandji…बहुत दिनों बाद दर्शन हुए….आशा है सब खैरियत से….
पर गाऊं मैं तेरे ही संग…
जब तू झूला मुझे झुलाये…
वाह बेहद हसीं रचना है शर्माजी
तहदिल आभार आपका……shashikantji…..
Bahut sundar…..Sharmaji….
तहदिल आभार आपका……Anuji…..
Bahut khoob ……………….,
तहदिल आभार आपका…Meenaji….