धरती बदली और न चांद बदला
सूरज वही है, न आसमान बदला।
बदल गए हम, आप और वो
लालच में न जाने क्यों इंसान बदला।
नीयति बदल गयी हमारी, इंसाफ बदला
सभ्यता और संस्कृति का हिसाब बदला।
बदल गयी हमारी नजरें बिस्वास बदला
हवा, अग्नि, जल, कुछ भी न बदले
नदिया, सागर, झरने, पहाड़ न बदले।
काटकर बदले हम दरख्त और पहाड़
काटकर बदल दिये जंगल और झाड।
जिसे संवारना था, गला काट दिया
आदमी इस तरह संस्कार बांट दिया।
उलझन मे आ गये हम, बिचार बदला
समस्याएं जटिल हुई, ब्याभिचार बदला।
प्राकृत की शृंगार बदली, वक्त बदला
न हम बदले न अपना अहंकार बदला।
बदल दो अपनी आदतें, ये झूठी दिखावा
ले आओ प्यार, मीठी मुस्कान, पहनावा।
सही कहा आपने……हम खुद ही बदलते हुए…गिरते नैतिक मूल्यों के लिए जिम्मेदार हैं….बेहद खूबसूरत………
बहुत बहुत शुक्रिया बब्बू जी…
हम बदले तो जग बदलेगा …………और परिवर्तन प्रकृति का नियम भी है …………..लेकिन महत्व इस बात का है की बदला किस दिशा और दशा में है … …………अति सुंदर अवलोकन ………!!
तहे दिल नमस्कार… सुक्रिया…
Nice thoughts ……….
Very very thanks.. Shishir jee…
क्या बात
बहोत खूब
शशिकांत जी बहुत बहुत शुक्रिया
True Lines
तहे दिल सुक्रिया सुखबीर जी कुछ मेरी रचना आपके आँखो की प्रतीक्षा में… Thanks
Bahut sundar…
Bahut bahut Sirius .. Anu Jee..
नैतिकता का हो रहा खुल्लम खुल्ला ह्रास , आपकी रचना कर रही उसपर भी विचार |
धन्यवाद है आपको जी जगा रहे संसार, मंगल करता दुआ खुदा आये साद विचार |
Bahut bahut sukriya Jee..