अगर त्योहार न आते
कैसा लगता?
बेहद फीका-फीका लगता
इतने चुस्त-दुरुश्त न हो पाते
हम इतने रोमांचित न हो पाते।
जवान
न इतना मचल पाते
बच्चे, गुब्बारे न उड़ाते
मौज-मस्ती, हो-हल्ला न कर पाते
वे खुशियां न मना पाते।
लड़कियां सज-धज न पातीं
नये-नये परिधान पहनकर
सखियों संग न वे धूम मचातीं
माताएं स्वादिष्ट पकवान बना कर
पास-पड़ोस में भेज न पातीं।
अगर त्योहार न आते
इतनी फिज़ा में रौनक न रहती
बच्चे, जवान, बूढ़े
अलग-थलग ही पड़े रह जाते
सभी एक रंग में न रंग पाते।
…र.अ. bsnl
very nice poetry .
beautiful lines…………………………….!!
sundar………………
True…
बहुत अच्छी भाव प्रस्तुत करती रचना…
Anjali ji, Niwatuya ji,
Babbu ji, Madhukar ji
and BP Sharma ji;
A lot of thanks to all of you
for reading & kind comments pl.
Sach kaha aapne
Thanks, Arun ji.